गर्दभ राजा

1- एक विशाल सुरम्य जंगल जिसमें प्रकृति की असीम छटा देखते ही बनती थीं , चारों ओर बड़ी-बड़ी झीलें - झरने एक से बढ़ कर एक फल , फूल व वृक्षों का झुण्ड कहीं- कहीं तो ऐसा सुन्दर दृश्य मानों स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आया हो ... इतने विस्तृत जंगल में विभिन्न पशु , पक्षियों की अथाह संख्या स्वाभाविक
थी | कितने तो दुसरे छोटे मोटे क्षेत्रो व जंगलो से आकर इसकी छटा से प्रभावित होकर यहीं के हो गए | विभिन्न प्रजातियों से सम्बन्ध रखने के कारण सबकी अपनी - अपनी प्रकृति व गुण थे | काले पर्वतों की श्रृंखला जैसा हाथियों का विशाल झुण्ड , गगन भेदी दहाड़ वाले शेर , चीते , चपल गति से भागते मृग , शिकार  के लिए इधर - उधर मुह मारती लोमड़ियाँ , भेड़िये , अपनी धुन में बिंदास भालू , एक डाल से दूसरी डाल पर छलांग लगाते बन्दर व संगीत के सप्तस्वर में कलरव करते पक्षी | सब कुछ विधिवत चल रहा था | 

2-इसी जंगल में एक बूढ़ा गधा जिसने जंगल के हर उतार- चढ़ाव का अनुभव अपनी बाल्यवस्था से वृधावस्था  तक भली भाँति किया था |  अपने इस अनुभव की खान पर उसको अच्छा खासा अभिमान था ---- पर सब व्यर्थ , समय - समयान्तर से उसे एक ही चीज़ खटक रही थी वो यह की - जंगल की पहचान हैं  तो वहाँ के बलशाली जानवर जैसे शेर , चीते , हाथी , और वहाँ के सौन्दर्य हैं , तो कुछ अलग प्रजाति के पशु - पक्षी जैसे
हिरन , मोर , कोयल , आदि | 

3-इन सब में अपने अस्तित्व का नगण्य होना उसे
उम्र के आखिरी पड़ाव में कष्ट प्रद प्रतीत होने लगा .... चौपाया होने , व सबसे वरिष्ट होने के नाते अपने साथ यह अनदेखा व्यवहार उसके लिए असहनीय हो गया .. बस एक दिन पूरा ज़ोर लगाकर नयी योजनाओ के साथ उठ खड़ा हुआ .... योजनाओ का उद्देश्य था , सभी पशु - पक्षियों में बड़े चौपायों की ओर से असुरक्षा व हीन भावना जगाना , उनको एक अदभुत  " जंगल क्रांति " की ओर प्रेरित करना , अन्ततः अपने को ' राजा ' कहलवा कर जीवनकाल से विदाई लेना |

4-उसने अपने कुछ छोटे - बड़े चौपाय साथी इकठ्ठा किये और जा पहुंचा चतुर स्वाभाव वाली लोमड़ी के पास.... याद दिलाने लगा की किस प्रकार से उसे तीव्र बुद्धि रखते हुए भी बड़े जानवरों के रोब का शिकार होना पड़ा है , किस प्रकार उनके शारीरिक बल के आगे उसकी बौद्धिक क्षमता को उपयुक्त स्थान नहीं दिया गया | लोमड़ी को यह बात समझ में आ गयी और बोल उठी " महोदय इस अन्याय के ख़िलाफ़ की जाने वाली लड़ाई में मैं आपके साथ हूँ " | 

5-फिर गया शेर की जूठन छोड़े शिकार को खींचते गीदड़ के पास  उसको भी तिरस्कृत जीवन
व अन्याय का हवाला देकर अपने साथ कर लिया | एक - एक कर अधिकतर चौपायों को " बूढ़े गधे " के तथ्य तर्कसंगत लगते रहे और कंधे से कंधा मिलाकर उसके साथ होते गये - 

6-छोटे-छोटे पशु पक्षियों की संख्या ने मिलकर एक बड़ी शक्ति बनाई जिनके स्वर के आगे नर भक्षी शेर , चीते से लेकर विशालतम आकृति वाले हाथियों को भी घुटने टेकने ही पड़े | अतः जंगल में क्रांति आ गई , " बूढ़े गधे " को राजा घोषित किया गया , चतुर लोमड़ी को सलाहकार और अन्य कई पशु पक्षियों को भी उच्य से उच्य पद्वी से सुशोभित किया गया | 

7-नई क्रान्ति के बाद नये क़ानून पारित किये गये जिसमे पहला क़ानून था की माँसाहारी पशु
छोटे पशुओ का शिकार नही करेंगे और सीधा - साधा शाकाहारी जीवन व्यतीत
करेंगे | ऐसा करना शेर , चीते , जैसे पशुओ किए लिए संभव नहीं था , पर उन्हें घास व कंदमूल की आदत डालनी ही पड़ी कारण था जंगल के अखंड नियम - दूसरा क़ानून था .... जंगल में कोई भी शिकारी घुसे तो सब मिलकर उसका सामना करेंगे | नियम चल पड़े अगले दिन से सभी पशु - पक्षी अपनी सदियों की प्रकृति त्याग कर नये प्रारूप में जीवन यापन करने लगे | पर एक दिन अचानक हाहाकार  मच गया " गर्दभ राजा " के पूंछने पर पता चला कि सभी पशुओ के कंदमूल खाने के करण जंगल के सारे फल एक ही दिन में समाप्त हो गये.... बड़े पशुओ का तो पेट भर गया,  छोटे भूखों मर रहे हैं | सभी गर्दभ राजा के पास फ़रयाद कर रहे थे..... गीदड़ बोला ' मैं तो पहले ही अच्छा था कम से कम शेर के छोड़े हाड़मास से पेट की भूख तो मिटती थी पर अब तो
घास - फूस भी नहीं मिल रही है क्योकि सारे कंद - मूल तो बड़े पशु चट कर गये हमारा तो नंबर भी नही आ पा रहा है' तभी रोता हुआ बन्दर आया " महाराज मेरा कुटुंब भूख से मर रहा है किसी पेड़ पर कोई फल नहीं है  हम क्या खाएं " धीरे - धीरे गर्दभ राजा पशु पक्षियों  के विशाल झुण्ड में घिर गया , उनके मर्म स्पर्षि  क्रंदन से
जंगल हिलने लगा - 

8-तभी शिकारियों का झुण्ड आ गया - शायद उन्हें भी पता चल गया था कि इस जंगल के शेर , चीते भी घांस खाने लगे हैं जिन्हें काबू में करके बंदी बनाना उनके बाये हाथ का खेल था |गर्दभ राजा हतप्रद रह गये , उन्होंने सभी पशु - पक्षियों से एक जुट होकर हमला बोलने का आदेश दिया पर यह क्या शेर छलांग लगाना चाह रहा है पर कई दिन से कंदमूल खाने के कारण उसकी मॉस पेशियां शिथिल पड़ चुकी थीं |  हाथियों के झुण्ड को तो कई दिनों से भूखे ही सोना पड़ रहा था , क्योकिं उनकी भूख शांत करने के लिए जंगल में पर्याप्त मात्रा में वनस्पति नहीं थी , अतः उनकी चिंघाड़ भी कुछ काम न कर सकी अब दृश्य यह था  कि मांसाहारी पशु अपनी शिथिलता व शाकाहारी अपनी दुर्बलता के कारण शिकारियों का सामना करने में असमर्थ हो गये | शिकारियों ने जंगल में
घुसकर जी भर कर वहाँ कि बहुमूल्य सम्पदा को अपने वश में ले लिया और चलते बने - पर " गर्दभ राजा " वहीं रहा | 

9-अगले दिन की सुबह जंगल की एक वीरान सुबह की तरह उजागर हुई एक भयावह सन्नाटा पूरे जंगल में विद्यमान था ..... उजड़े हुए पेड़ - पौधे , दयनीय दशा में साँस लेते इधर उधर पड़े पशु-पक्षी , ऐसा लगता था मानो संपूर्ण सुरम्य वातावरण आकाल की गर्त में समा गया  गर्दभ राजा  एक टूटे पेड़ के समीप खड़ा हो गया - आज वह पूर्णतः उत्साहहीन दिख रहा था | उसके मन में तरह - तरह के स्वर उभरने लगे - मरने से पहले अपनी पहचान पाने की लालसा में मैंने भोले- भाले पशु पक्षियों को भ्रमित किया उनके खाने पीने के नियम बदलवाए | पर एक सुनियोजित जंगल का राजा होने के बजाए मै खड़ा हूँ .....पशु - पक्षियों के पार्थिक शरीर पर | पर.... मेरी योजना में कहीं न कहीं आम पशु - पक्षियों को सम्मान दिलवाना  भी था , उसके परिणाम भी प्रतिकूल क्यों दिखे ?.... तभी चतुर लोमड़ी उसके समीप आकर एक पत्थर पर बैठ गई ,  गहरी साँस लेकर बोली " क्या सोच रहे हैं महाराज  ? आपकी चिंता का उत्तर मै देती हूँ - वास्तव में  आपकी योजनाओं या तार्किक कारणों में कमी नही थी , कमी केवल  इतनी सी थी कि हम यदि जंगल के प्राकृतिक नियमो में छेड़छाड़ करते हैं तो
इसका सबसे बड़ा प्रभाव हमारी ' खाद्य श्रंखला ' पर पड़ता है जो आपने अपनी आँखों से देखा भी | शरीर को जब भोजन ही नही मिलेगा तो वह किसी दिशा में बढ़ने के लिए मन-मस्तिष्क कि शक्ति कहाँ से प्राप्त करेगा ? ..... उलटे भोजन का अभाव उससे वो पाप भी करा देगा जो उसने कभी नहीं किया , आप बुज़ुर्ग हैं - पर क्षमा के साथ कहूँगी कि आपकी योजना निःसंदेह ही नादानी से भरपूर थी जो आज विनाश का करण बनी " पर..... गर्दभ राजा कुछ और ही विचार कर रहा था - सोचने लगा मेरी सबसे  बड़ी नादानी यह थी की राजा बनकर राज्य करने और अपने नियम चलाने की स्वार्थपूर्ण योजना  ने मुझे  इतना अँधा कर दिया की मैं भूल गया  कि जगत की यही रीति है कि -  "शेर अट्ठारह घंटे सोकर भी शेर रहता है और हम अट्ठारह घंटे काम करके भी  गधे ही कहलाते है..............!