टेढ़ी दुम

1 - शहर के हाइवे के किनारे बसा एक हरा भरा छोटा सा जंगल जिसमें नेवले , गिरगिटान , गिलहरियों से लेकर लोमड़ी, कुत्ते , बंदर जैसे छोटे - मोटे पशु अपने - अपने रंग ढंग से जी रहे थे  - कोई गाड़ियों से गुज़रते यात्रियों के जूठन की चाह में सड़क तक निकल आता , कोई छोटे - छोटे कीड़े मकोड़ों से पेट भरता और कुछ इधर - उधर लगे जंगली | फलों से भूख शांत कर लेते |

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उसी जंगल में रहता था एक शानदार शहरी घोड़ा - जो शहर की भीड़ भरे जीवन और अपने मालिक की वफादारी निभाते - निभाते थक चुका था | आत्मसम्मान से जीवन यापन की चाह उसे जंगल के स्वछंद वातावरण में खींच लायी |

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धीरे - धीरे उसकी सभी पशु पक्षियों से अच्छी ख़ासी मित्रता हो गयी | एक दिन उसने देखा जंगल में रहने वाले कुत्तों के समूह को सभी पशु इनकी टेढ़ी दुम के कारण चिढ़ा रहे थे | घोड़ा तो था मन का साफ़ , और बहुत दयालु उसे उन कुत्तों पर तुरंत दया गई अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए उसने सबको एक - एक छड़ी और पट्टी देकर कहा " इस सीधी छड़ी के सहारे अपनी - अपनी पूंछ बांध लो , कुछ दिनों में सीधी हो जाएगी | सबने वैसा ही किया |

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कुत्ते भी छड़ी से बँधी सीधी पूंछ लेकर उसे इधर - उधर लहराते हुए शान से जंगल में टहलने लगे | तभी उधर से भागती हुई लोमड़ी की दृष्टि उनपर पड़ी | उनके उपचार के तरीके को देखकर ही वह समझ गई कि यह युक्ति घोड़े कि दी हुई है जो इन कुत्तों की पूंछ को सीधा करके इन्हें समानता का अधिकार दिलवाना चाहता है , ऐसा हो जाने के बाद मुझ चतुर और इन भौंकने वाले कुत्तों में क्या अंतर रह जायेगा ? बस धूर्त लोमड़ी ने घोड़े को सबक सिखाने कि ठानी |

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कुत्तों के झुण्ड के पास जाकर मोटे-मोटे आँसू बहाने लगी और बोली " मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि तुम्हारे साथ ये दुर्वव्यवहार किसने किया इस टेढ़ी पूंछ का श्रेह अकेले तुम्हे ही मिला है , ज़रूर वह तुम्हारा बहुत बड़ा शत्रु हैं या तुमसे जलने वाला होगा | मेरे विचार से तो तुम्हें उसका अस्तित्व ही समाप्त कर देना चाहिए "| लोमड़ी की बात तुरंत मुर्ख कुत्तों की समझ में गई | वे दौड़ते हुए यूकेलिप्टस के पेड़ के पास खड़े घोड़े के पास पहुँच गये और अचानक उसपर हमला बोल दिया काट-काट कर उसकी कमर , गर्दन  सब लहुलुहान कर दी | घोड़ा बेचारा भागने लगा ....कुत्तों ने उसे जंगल के बाहर शहर तक खदेड़ दिया | घोड़ा एकबार  फिर जंगल का शांत जीवन छोड़कर शहर का 'बंदी' जीवन बिताने पर विवश हो गया |

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पर .... उसे एक सीख मिली - वह यह कि , किसी का स्तर बढ़ाने कि दिशा में प्रयास करना एक परोपकार है पर उसकी मानसिक दशा जाने बिना परोपकार करना एक सबसे बड़ी मुर्खता ...............|