जीवन मंत्र
सोचती हूँ कैसा है ये जीवन मंत्र ,
सोचती हूँ कैसा है ये जीवन मंत्र ,
हाड़ मॉस की गुफा के अन्दर ,
अस्ति पंजर के घेरे में बंदी ,
रक्त - वर्णित फड़फड़ाता पंछी.. या ,
काया का एक पागल प्रेमी , जिसके....
हर उत्साह पर आनन्दित होता ,
हर अश्रु पर प्लावित होता ,
मिलन ऋतु के सपने बुनता ,
विरह काल में क्रंदन करता ,
नासिका द्वार के पवन वेग से ,
जीवन को स्पंदन देता |
पर .. आग पानी हो या आंधी ,
समय ने सबकी सीमा बाँधी |
पिजड़े के बंद द्वार में ,
बिना किसी उद्गार के ,
नि:शब्द ये .. भी हो जायेगा ,
प्राण-प्रीय काया को , प्राणहीन बनाकर,
निष्ठुरता का खेल रचायेगा |
हाँ .......... जीवन - काल की नाप - जोख में ,
न्याय यथार्थ की भाग दौड़ में ,
उजली , निष्पाप अपनी प्रेयसी को ,
पवित्र प्रेम - उपहार स्वरुप ,
अमरता का रूप दे जाएगा .........l
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