मिट्टी के चाँद

मिट्टी के चाँद

 

1 - बर्तनों की खटर - पटर के बीच चाय की प्यालियों  का शोर और साथ ही इन सब के सुर में सुर मिलाती माँ के चलते हाथों की चूड़ियों की छन - छन और ज़िद्दी लकड़ी को बार - बार सुलगाने की कोशिश करती फुंकनी की फूं .... फूं ,
भाई - बहनों के आँगन में टप- टप 
दौड़ते क़दमो की चप्पलो की अवाज़ यह सब कुछ मिले जुले स्वर सुनकर नई सुबह की नई तरंग मानों उसके नन्हे से शरीर में कौन सी स्फूर्ति जगा देती जो वह बेसुध सी गहरी नींद से उठ खड़ा हो जाता |


2 - भागकर रसोई में पहुँचता - अपनी रात की बचाई रोटी का तकाज़ा किसी फिक्स खाताधारी की जमा पूंजी की तरह करता और उसे हाथ में पकड़कर बैठ जाता 
सुरमई चाय के कटोरे में मसल - मसल कर खाने | पर मन अब तक शरीर से कहीं दूर निकल जाता - अन्नुलाल के नाले के किनारे ! चिकनी-चिकनी गीली मिट्टी  की गोलियों के ठंडे एहसास उसकी हथेलियों पर दस्तक देने लगते | इसी उधेड़बुन में चाय रोटी का नाश्ता कब ख़त्म हो जाता उसे पता ही नही चलता | आसमान के विस्तृत पर्दों पर कल्पना की उड़ान का अंत चाय के कटोरे पर तब होता  जब खाली चम्मच उसके मुहँ तक जाता |


3 - सात भाई बहन और माँ - बाप मिलाकर उसका एक बड़ा सा परिवार था पर ...उसका संसार तो सबसे अलग चिलबिल के पेड़ की छाँव में था वह चढ़ी दोपहर में इसी को अपना आश्रय बनाता | ज्यादा बड़े भाई बहनो पर तो उसका विशेष वश चलता न था पर केवल एक वर्ष बड़ी और अपनी दो छोटी बहनों पर उसका अच्छा खासा रुआब था | दिन चढ़ने के साथ ही हर दिन सुबह से शाम तक की अत्यन्त    'कोंफि
डेंशियल ' योजना तैयार की जाती | सबसे अहम ' मिशन ' होता नाले के किनारे जाकर गीली मिट्टी से अपनी कल्पना में उभरी रंग बिरंगी आकृतियों को हथेलियों से आकार देना | इस काम में वही दोनों छोटी - बड़ी बहने जो काफी गंभीरता से उसकी गतिविधियां देख कर निरंतर सहयोग देने को तैयार रहतीं | कभी निर्देश मिलने पर मिट्टी का कोई बड़ा सा लोंदा उठा कर उसके पास रखतीं कभी बनी हुई आकृति को चिकना बनाने में उसकी मदद करतीं | तीन बहनों की इस मंडली को बनाने में भी उसकी एक चाल थी , वह ये कि सूरज ढलने के बाद देर से घर लौटने पर बाप की पिटाई की तीव्रता , उसका नंबर आते आते कुछ कम हो जाये और पिटने के बाद उस अकेले को कोई चिढ़ा न सके |


4 - उसको सबसे प्रिय लगता मिट्टी की चिकनी और ठोंस गोलियाँ बनाना - क्योंकि इसका ताल्लुक  गुलेल में फंसाकर चिड़ियों का शिकार करने की अगली योजना से होता था | गोलियाँ धुप में सजाई जानी शुरू हो जातीं | एक सुव्यवस्थित देर तक धूप वाला स्थान चुना जाता कतारों में गोलियाँ सजती कुछ इस तरह कि हर किसी पर धूप शाम कि अंतिम किरण तक पड़ सके | उनके आगे रखे जाते छोटे - छोटे बर्तन और मिट्टी के चूल्हे इस  पुरे अभ्यास में उसका काम योजना बनाने से लेकर कच्चा माल लाना और निर्देश देना होता वहीं  बहनों का काम उसके निर्देशों का पूरी मुस्तैदी से पालन करना होता l

5 - सूरज सिर पर चढ़ते ही धुप से उसकी कोमल काया जलने लगती आहट लेने पर पता चला घर के ज़्यादातर बड़े सो गये बस इशारा किया बागवाले चिलबिल के घने पेड़  की तरफ और मंडली प्रस्थान कर गई उसी पेड़ के नीचे  और शुरू  हो गया छोटे - छोटे हाथो से चिलबिल बटोरने का काम | फटी निक्कर की जेब मे रखने की कोशिश कामयाब न होती तो हाथों को सीने से लगाकर उसी के बीच पूरा ढेर टिका लेता | सरदार  को ऐसा करते देख मंडली के अन्य सदस्य भी वैसा  ही करते  | फिर शरू होता छोटे - छोटे ईंटो से चिलबिल कूटने और उसका चिरौंजी जैसे फल निकालने का कार्यक्रम | इस  शैतान चौकड़ी की हर गतिविधि का  अनुशासन और एकता तो देखते ही बनती l अपनी शरारतो में इन मासूम बदमाशों को न 
कती लू छूने का साहस करती , न ही धूप इनके इरादों को जला पाती |साहस था तो बिल्लू  में जिसका वास्तविक नाम तो बबलू था , पर खूंखार बिल्ले जैसी दबी चाल से आकर सबकी शैतानी का निरीक्षण छोटी - छोटी आँखें झपका-झपका कर करता और शाम को घर के बड़ों से पूरी चुगली लगा देता बस ' शैतान चौकड़ी ' ने चिढ़कर इसका नाम बिल्लू रख दिया | बिल्लू के परिचय से ही स्पष्ट है कि उसकी इस शैतान चौकड़ी से कभी बनती नहीं थी  , क्योकिं वह था काफ़ी छुपा रुस्तम जो इन बच्चों का फुफेरा भाई था , और गर्मियों की छुट्टियों में मामा जी के घर सफीपुर से घूमने आया करता और दिल भर कर बदमाश कंपनी का ' स्टिंग ऑपरेशन ' करके अपनी प्रशंसा बटोरता | पर... इनका ये सिलसिला कहाँ रुकने वाला था | फिर शरू होता फ़ौज की मोर्चाबंदी का सिलसिला - किसी को रसोई से चीनी निकालने के काम पर लगाया जाता तो किसी को सोते हुओं पर नज़र रखने का आदेश दिया जाता ....... फलो के छोटे से ढेर को कूट कर ' पेस्ट ' बनाया जाता ......वहीं कहीं बाग़ की लकड़ियाँ चुनकर आग जलती और चढ़ जाती मिट्टी के बरतन में चिलबिल की खीर, जिसका स्वाद राजभोग से कम न लगता | दांत के निचे आती मीठास ,व किसकिसाहट का मिला - जुला एक ऐसा विचित्र स्वाद बनता और उससे नन्हे-नन्हे अस्तित्व में वो आनंद जागता जिसका मुकाबला पाँच सितारा होटल का पकवान भी नहीं कर सकता |


6 - इस अतुल्य आनंद का दाम तो तब चुकाना पड़ता जब चिलबिल की गर्म तासीर से कुछ घंटो के बाद किसी की नकसीर फटती और नाक से लाल - 
लाल खून बाहर आकर बता देता कि इस बदमाश चौकड़ी ने क्या खाया था ? और आस्तीन में खून पोंछ कर मुँह धोने की कोशिश भी की जाती तो हमला हो जाता बबलू यानि बिल्लू का जो ज़बरदस्ती सबके चेहरे घुमा- घुमा कर चिलबिल की खीर की दावत का सारा वृत्तांत सुना देता | यह सब सुनाते वक़्त उसके हाथ , गर्दन , आँखें सब कुछ इस प्रकार हिलते जैसे किसी ' रोबोट ' को ' वाईब्रेशन मोड ' पर लगा दिया हो | बस फिर शुरू हो जाता पिताजी के ' रिमाण्ड ' का सिलसिला .... लहराती चिकनी छड़ी , और " लाइन से खड़े हो जाओ " ! का कमाण्ड कुछ ऐसा भयभीत करता कि अगली पिछली सारी योजनाओं का कच्चा - चिठ्ठा खुल जाता |7 -फिर होती जमकर धुलाई | मोटे-मोटे आंसुओं को साक्षी बनाकर , कान पकड़कर - अब ऐसा न करने ..... के  वायदे भी किये जाते पर छड़ी के निशान के साथ ही वायदे भी रफूचक्कर..... |

8 -चारपाई पर लेट गए तो इतने शांत मानो यह सबसे बड़े मासूमियत के फ़रिश्ते हों .... पर मन का शोर बढ़ गया , 
और लाल - लाल रोई हुई आँखों को कलाई से आधी ढककर सब ख़ूनी नज़रों से घूरना शुरू करते अलग बिस्तर पर शांति से पसरे, 'पाकेट बुक ' पढ़ते बिल्लू महाराज को |   बिल्लू की भी तिरछी दृष्टि किताब से फिसल कर इन्ही पर रहती | इसके चेहरे पर जीत की मुस्कान उन्हें और भी जला - भुना देती | सोचते - काश .... ! किसी दिन यह अकेला मिल जाये .... तो सीधे अन्नू लाल के नाले के कीचड़ में धकेल कर ..... इस बिल्लू के बच्चे को चूहा बना दें | साथ ही एक प्रण भी होता ..... कल कुछ इस तरह से काम किया जायेगा , जो किसी को कानो - कान खबर न हो ...... और इस बिल्लू के बच्चे को तो बिलकुल भी नहीं ...|

9 - यह कोई नई बात नही थी ऐसी प्रतिज्ञा तो लेकर ये रोज़ ही सोते थे .........l